वक्त रुकेगा, धड़कन की रफ़्तार खड़ी मिल जायेगी
अगर उसी 'सिग्नल' पे वो, इस बार खड़ी मिल जायेगी।
हम तो जंगल - दरिया - सहरा, इस उम्मीद पे लाँघ गए
जब पहुंचेंगे वो हमको उस पार खड़ी मिल जायेगी।
दिल से हैं मजबूर, 'सितम' भूले सारे वरना अब तक,
आंसू की पलटन लड़ने को तैयार खड़ी मिल जायेगी।
'सोनागाछी' की गलियों को बेमतलब बदनाम किया है
जिस रस्ते पे निकल पडो, दो - चार खड़ी मिल जायेगी।
ये किस्मत है कि 'चेन्नई' में हम बसों में धक्के खाते हैं
वरना 'दिल्ली' में अपनी भी एक 'कार' खड़ी मिल जायेगी।
Saturday, December 27, 2008
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बहोत खूब लिखा है आपने .....
ReplyDeleteDIL KI AWAAZ SUNAI DE GAYI HUZOOR............ MAASHA ALLAHA........
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