वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Sunday, February 28, 2010

और लम्हें तोड़ लूं मैं.....

हार कब वो हार थी ग़र ले किसी का ग़म चले तो..
जीत भी वो हार थी जो ख़ुद से नज़रें ना मिले तो..
ज़िन्दगी के साज़ पर जब ख़त्म हों ये सिलसिले तो..
हार थी या जीत ज्यादा; आंकड़ों को जोड़ लूं मैं
वक़्त की शाखों से थोड़े और लम्हें तोड़ लूं मैं

अनकहे लफ़्ज़ों को एक आवाज़ दे दूं आख़िरी दम..
अनसुने गीतों को अपने राज़ दे दूं आख़िरी दम..
अनमने शब् को नया आग़ाज़ दे दूं आख़िरी दम..
अनधुली माज़ी की चादर आख़िरी दम ओढ़ लूं मैं 
वक़्त की शाखों से थोड़े और लम्हें तोड़ लूं मैं 

वक़्त की शाखों से थोड़े और लम्हें तोड़ लूं मैं..... 

Saturday, February 27, 2010

कदमों के मेरे निशां हैं; सखी....

गलियाँ वहीं राह तकती रहीं
हम ही न जाने कहां हैं सखी

संभल के चलो मिट न जायें कहीं
कदमों के मेरे निशां हैं; सखी

साज़ों ने मुझसे है हंस के कहा
अभी तेरी साँसें जवां हैं सखी

रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
चलो देखें कितने जहां हैं सखी

नज़र लेके फूलों से; पढना इन्हें
परियों की ये दास्तां हैं सखी.....

Friday, February 19, 2010

मैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है....

बासी, फ़ीका, चुभता मंज़र देखा है
सस्ते में नीलाम हुआ घर देखा है

कैसे कैसे ख़्वाबों को गिरवी रख के
गहरी नींद में सोया बिस्तर देखा है

कल तक फूल ही फूल थे जिसकी बातों में
आज उसी के हाथ में पत्थर देखा है

शायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
मैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है

तुम ही नब्ज़ टटोलो आके रातों की
हमने तो सूरज भी डर-डर देखा है

'काफ़िर'  को कब रोता देखा दुनिया ने
चादर से मुंह ढकते अक्सर देखा है......

Sunday, February 14, 2010

जी उठा एहसास फिर....

जी उठा एहसास फिर; नेअमत* ख़ुदा की है  
ख़ूब जानूं; ये ख़ुमारी* इब्तदा* की है

ख़ामियां उनकी सभी; 'अंदाज़' लगते हैं
या इलाही! ये नज़र कैसी अता* की है?

इश्क़ का मैं बेअदब*, हारा खिलाड़ी हूँ 
इस दफ़ा बाज़ी मगर अहद-ए-वफ़ा* की है  

आंसुओं से आसमां का रंग बदलेगा
आज अरसों बाद 'काफ़िर' ने दुआ की है

आइये अब आज़मा के देखिये हमको
जब तलक धड़कन चले ये सांस बाक़ी है...  


नेअमत   = Precious / Invaluable Thing
ख़ुमारी   = Hangover
इब्तदा   = Beginning
अता     = To Give
बेअदब   = Ill-Mannered
अहद-ए-वफ़ा = Promise of Loyalty

Monday, February 8, 2010

ये परी कहाँ से आयी है....

अब्र* में आँखें मूँद कहीं
जो छिपी हुयी थी बूँद कहीं
अलसाई किरणों सी आ के 
धरती पे मुस्कायी है.... 
परी कहाँ से आयी है...
ये परी कहाँ से आयी है.... 



छोटी उंगली, बंद है मुट्ठी
टिमटिम आँखें प्यारी सी
झट देखे और झट सो जाए
चंचल राजदुलारी सी

जीभ निकाले, कनखी मारे
घूरे आते जाते को
अलग नज़रिया देते जाये
सारे रिश्ते नाते को

बड़े रुतों के बाद नयन में
'रुत झिलमिल' सी छायी है
परी कहाँ से आयी है...
ये परी कहाँ से आयी है....




मम्मी-पापा की आँखों में
ढूंढें एक कहानी को
सफ़र की सारी बात बताये
बगल में लेटी नानी को

खाना पीना मस्त रहा सब
किसी चीज़ की 'फ़ाइट'  नहीं
बस कमरा 'कंजस्टेड'  था और 
नौ महीने से 'लाइट' नहीं

सुन के ऐसी न्यारी बातें
नानी भी शरमाई है...
परी कहाँ से आयी है...
ये परी कहाँ से आयी है....




सीपी से  कोई  मोती निकला
दुआ की ख़ुशबू साथ लिये
डोली उतरी फ़लक से मानो
तारों की बारात लिये

काजल का एक टीका करके
चंदा माथा चूम रहा
जुगनू की लोरी सुन-सुन के
घर आंगन सब झूम रहा

वक़्त ने करवट बदला देखो
ख़ुशी ने ली अंगड़ाई है
परी कहाँ से आयी है
ये परी कहाँ से आयी है...

ये परी कहाँ से आयी है !!!


*अब्र = बादल

Tuesday, February 2, 2010

इश्क़ पर हावी यहाँ दस्तूर दिखता है...

इश्क़ पर हावी यहाँ दस्तूर दिखता है
कमनज़र हूँ; पास है जो, दूर दिखता है


झूठ के सब रहनुमा आगे निकल गये
सच का पुतला चौक पे मजबूर दिखता है


रौनक-ए-महफ़िल हुआ करता था कॉलेज में
आज ऑफिस में झुका मज़दूर दिखता है


अफवाह थी शायद समय सब घाव भर देगा
पट्टियां खोलीं तो अब नासूर दिखता है


नींद में अक्सर सुना वो बड़बड़ाता   है..
"माँ तुझी में तो ख़ुदा सा नूर दिखता है"....