वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Saturday, July 31, 2010

रुबाई -१२

दूर पर्बत से हवा को मोड़ लाया हूँ..
बादलों का एक गुच्छा तोड़ लाया हूँ...


जो लकीरें चंद बरसों से कहीं गुमराह थीं 
वो लकीरें आज फिर मैं जोड़ लाया हूँ...