वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Wednesday, September 23, 2009

गीत को मेरे, तेरी आवाज़ भी तो चाहिये....

दर्द को इन धड़कनों का साज़ भी तो चाहिये
गीत को मेरे, तेरी आवाज़ भी तो चाहिये

सिर्फ़ दौलत के सहारे 'ताज' कब बनते मियां
सरफिरों में कुछ ग़म-ए-मुमताज़ भी तो चाहिये

हुस्न की रानाईयां सब कुछ नहीं है गुलबदन
दिल को छूने के लिए; "अंदाज़" भी तो चाहिये

पंख के ज़ख्मों की टीसें; यूं तो थोडी कम सी है
उड़ने को पर हसरत-ए-परवाज़ भी तो चाहिये

जाम छलकाने फ़क़त से महफ़िलें सजती नहीं
दमसाज़ भी तो चाहिये; दिलनाज़ भी तो चाहिये

गीत को मेरे, तेरी आवाज़ भी तो चाहिये...

Thursday, September 10, 2009

कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में.....

परी के किस्से, ग़ज़ल की खुशबू; लहर की थपकी, सहर का जादू
रख आया है शायर सब जज़्बात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में
तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में ॥

चाँद की चोटी, धूप के गजरे; बंधे 'रिबन' से शाम के नखरे
लटों में उलझी कुदरत की सौगात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में
तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में ॥

हल्की बूँदें, रात अंधेरी; मद्धम धुन पर, चलती गाड़ी
नज़र मिली उफ़्फ़... 'मेरा बांया हाथ' तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में
तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में ॥

ज़ुल्फ बादल, ज़ुल्फ झरना; ज़ुल्फ बोली, 'प्यार कर ना'
थिरकी उंगली और ठहरे लम्हात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में
तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में ॥

ज़ुल्फ बिछाओ, सोयेंगे हम; ज़ुल्फ में छुपकर रोयेंगे हम
सावन देखे बिन बादल बरसात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में
तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में ॥

तुम ही कहो ना, कैसे लिपटी रात तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में......