(१)
शबनम से खुली, ज़ुल्फें धुली सी
किरण में रूप की मदिरा घुली सी
अल्हड़, शोख, चंचल, चुलबुली सी
घुंघरू की खनक से "चाँद" को तरसा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
(२)
गुलाबी रंग की बिंदी लगाए
रसीले नैन में काजल सजाये
दुपट्टे पे सितारे जगमगाए
शफक पे लालिमा होठों की जैसे छा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
(३)
गले में रौशनी का हार डाले
कभी कंगन, कभी झुमके संभाले
बिखेरे बाल; फिर काकुल निकाले
दर्पण में ख़ुद को देख, ख़ुद शरमा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
किरण में रूप की मदिरा घुली सी
अल्हड़, शोख, चंचल, चुलबुली सी
घुंघरू की खनक से "चाँद" को तरसा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
(२)
गुलाबी रंग की बिंदी लगाए
रसीले नैन में काजल सजाये
दुपट्टे पे सितारे जगमगाए
शफक पे लालिमा होठों की जैसे छा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
(३)
गले में रौशनी का हार डाले
कभी कंगन, कभी झुमके संभाले
बिखेरे बाल; फिर काकुल निकाले
दर्पण में ख़ुद को देख, ख़ुद शरमा रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
(४)
सुनहरी धूप के गुंचे खिलाने
सुनहरी धूप के गुंचे खिलाने
नई आशा, नए जज्बे जगाने
अंधेरे के पुराने सुर मिटाने
उम्मीदों के नए कुछ गीत अबके ला रही है
सुबह सृंगार कर के आ रही, बस आ रही है।
awesome poetry....
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeletethese are very beautiful lines , गुलाबी रंग की बिंदी लगाए, रसीले नैन में काजल सजाये
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