जहाँ कश्ती मेरी डूबी; नदी सी बह के रोयी हूँ।
कलेजे से लगाये घाव को मैं सह के रोयी हूँ॥
मैं हंसती हूँ तो आंसू की लकीरें साथ खिंचती हैं
कभी कुछ कह के रोयी हूँ; कभी चुप रह के, रोयी हूँ॥
Saturday, December 12, 2009
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शानदार
ReplyDeletewah.
ReplyDeletewaah kya royi hai...itni khoobsurti ke saath rona sabke bas ki baat nahi
ReplyDeleteबेहतरीन...वाह!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..मन के उदास भावों की व्याख्या ..
ReplyDelete"कभी कुछ कह के रोयी हूँ; कभी चुप रह के, रोयी हूँ"
आशु
(http://dayinsiliconvalley.blogspot.com/)
सुंदर लगी रूबाई , शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत खूब ........
ReplyDeletebahut badhiyaa hai !
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