ख़ुद रिझा रही हो कल से क्यों गजरे बांधे हैं झूलों पर
फिर ना कहना; 'क्यों भंवरा जाके बैठा है फूलों पर'
अजब निराली दुनिया; गोरख-धंधे की तुम हद देखो
मछली ख़ुद जा चोंच से चिपके; और इल्ज़ाम बगूलों पर
नए ज़माने के तेवर हैं; थोड़ा गिरना पड़ता है
पप्पू मन ही मन मुस्काये; रात की नादां भूलों पर
कह दो बुड्ढों से वो दकिया_नूसी* बातें बंद करें
ये देश है वीर जवानों का पर बरकत नामाकूलों** पर
भांड़ में जाए चुनरी साली; लुत्फ़ उठाओ, मौज करो
'काफिर' तुमने मुंह की खायी, जब जब चले उसूलों पर
'काफिर' तुमने मुंह की खायी, जब जब चले उसूलों पर...
*Dakiya_Noosi = Conservative
**Naamaakool = Good for Nothing
Sunday, November 29, 2009
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बढ़िया!
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल है भाई ....
ReplyDeleteअजब निराली दुनिया; गोरख-धंधे की तुम हद देखो
ReplyDeleteमछली ख़ुद जा चोंच से चिपके; और इल्ज़ाम बगूलों पर ...
नये तेवर की ग़ज़ल है .... बहुत लाजवाब ........
अच्छा अन्दाजे बयां
ReplyDeletebahut badhia.
ReplyDeleteभांड़ में जाए चुनरी साली; लुत्फ़ उठाओ, मौज करो
ReplyDelete'काफिर' तुमने मुंह की खायी, जब जब चले उसूलों पर
गज़ब साहब..बस मार डाला आपने..
badi hi shaandaar ghazal...
ReplyDeletethank you for sharing..
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