एक पागल रात में
ख़्वाब में था आ गया
घंटों खड़ा आकाश को
एकटक तकता रहा
और अचानक हंस पड़ा
फिर गालियां बकने लगा
अर्श की दीवार पर
खून से लिखने लगा
वो शरीक-ए-जश्न हों
हाँ वो शरीक-ए-जश्न हों
जिसने धोखे खाये हों
रूह जिसकी लुट गयी
और ठरक की सेज़ पर
जिसकी सांसें घुट गयी
पंख जिसके खो गये
हाथ जिसके कट गये
जो ख़राशों में पले
प्यार से महरूम हों
ज़ख्म है जिसकी बहन
आयें वो बलवाई सब
और फ़िज़ा-ए-दर्द में
एक कतरा रूह दें
एक कतरा रूह दें...
आग सी फैली ख़बर
सुन के मुर्दे जी गये
ज़िन्दगी और मौत को
साथ रख कर पी गये
इंकलाबी आ गये
बेड़ियों को तोड़ कर
हाथ में परचम लिये
आंख में शोले लिये
दांत में हड्डी लिये
जीभ को उलटी किये
'आ गयी' मैं 'आ गया'
हर दिशा से शोर था
रास्ते खुद चल पड़े
चल पड़ी पगडंडियाँ
और दलालों से झगड़कर
मंडियों की रंडियां
मुट्ठियों को भींच कर
चीखती थीं बारहा
जाविदा ये रस्म हो
जाविदा ये साज़ हो
जाविदा इस साज़ पर
दर्द की आवाज़ हो
दर्द का ये जश्न है
दर्द का ये जश्न है
हाँ दर्द का ये जश्न है
दर्द का ये जश्न है....
दर्द का ये जश्न है....
ReplyDelete-बहुत गहरा लिखा..वाह!!
bahut hi sunder hai...
ReplyDeletesaari rachnayien acchi lagi. Likhtey rahiye bawzood kisi khalal ke ...
दिल को छु गयी रचना । बधाई
ReplyDeleteमुट्ठियों को भींच कर
ReplyDeleteचीखती थीं बारहा
जाविदा ये रस्म हो
जाविदा ये साज़ हो
जाविदा इस साज़ पर
दर्द की आवाज़ हो
दर्द का ये जश्न है
Bahut Sundar !
बहुत सुंदर कविता... साधुवाद..
ReplyDeleteDARD HI DARD .... DARD KI MAARNIK ABHIVYAKTI HAI AAPKI RACHNA ... KAMAAL KA LIKHA HAI ..
ReplyDeleteTouched.....
ReplyDeletewah. bahut khobb.
ReplyDeleteऔर फ़िज़ा-ए-दर्द में
ReplyDeleteएक कतरा रूह दें
एक कतरा रूह दें...
kisi film me geet ki tareh jana chahiye ise to..
Thank You So much Friends for the Encouraging Words
ReplyDeletemay be useful for all, helpful article once and pardon me permission to share also here :
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