तारों का कोई गुट रहा होगा
चौक पर जो जुट रहा होगा
रंग ओढी अल्पना के पास
नूर का झुरमुट रहा होगा
आतिशफिशां माहौल है कल से
तम का दम तो घुट रहा होगा
चांदनी माहिर है 'पत्तों' में
चाँद पक्का लुट रहा होगा
रात जल के गिर रही होगी
और पर्दा उठ रहा होगा
Saturday, October 17, 2009
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Chaand pakka lut raha hoga...waah :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना, वाह!
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
वाह बहुत अच्छे....क्या खूब लिखा है ....!!
ReplyDeleteचांदनी माहिर है 'पत्तों' में
ReplyDeleteचाँद पक्का लुट रहा होगा...amazing lines....
चांदनी माहिर है 'पत्तों' में
ReplyDeleteचाँद पक्का लुट रहा होगा
विशाल साहब हर बार आप लाजवाब कर देते हैं इतनी अनोखी कल्पनाओं को पेश कर के..हम तो पक्का लुट गये..
और इस शेर के लिये हमारी भी शुभकामनाएं लें..
आतिशफिशां माहौल है कल से
तम का दम तो घुट रहा होगा
bhahut sundar kriti hai yeh.
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