वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Sunday, November 29, 2009

जब जब चले उसूलों पर...

ख़ुद रिझा रही हो कल से क्यों गजरे बांधे हैं झूलों पर
फिर ना कहना; 'क्यों भंवरा जाके बैठा है फूलों पर'

अजब निराली दुनिया; गोरख-धंधे की तुम हद देखो
मछली ख़ुद जा चोंच से चिपके; और इल्ज़ाम बगूलों पर

नए ज़माने के तेवर हैं; थोड़ा गिरना पड़ता है
पप्पू मन ही मन मुस्काये; रात की नादां भूलों पर

कह दो बुड्ढों से वो दकिया_नूसी* बातें बंद करें
ये देश है वीर जवानों का पर बरकत नामाकूलों** पर

भांड़ में जाए चुनरी साली; लुत्फ़ उठाओ, मौज करो
'काफिर' तुमने मुंह की खायी, जब जब चले उसूलों पर

'काफिर' तुमने मुंह की खायी, जब जब चले उसूलों पर...


*Dakiya_Noosi = Conservative
**Naamaakool = Good for Nothing

Wednesday, November 25, 2009

थोड़े प्यार की थोड़ी खुशियाँ (एक गीत)

थोड़ी बेधड़क; थोड़ी बेहिचक
थोड़े दिन से मैं; फ़िरूँ बावली...
थोड़ी दूरियां; थोड़े फ़ासले
थोड़ा तुम चले; थोड़ा मैं चली...

थोड़े बेख़बर; थोड़े बेफ़िक़र
मेरे ख़्वाब हैं; थोड़े रतजगे...
थोड़ा सोचती; थोड़ा जानती
थोड़ा चाँद क्यों; अच्छा लगे...

थोड़ा चाँद क्यों; अच्छा लगे...
वक़्त से मांगे थोड़े लम्हे, जीने दो; मत रोको ना...
थोड़े प्यार की थोड़ी खुशियाँ, पीने दो; मत रोको ना...


थोड़ी गुनगुनी; सी धूप को
थोड़ा गुनगुनाते; मैं चलूँ...
थोड़ी गुदगुदी; मेरे दिल में क्यों
शाम-ओ-सहर; थोड़ा मैं जलूं...

ये खिड़कियाँ; थोड़ी खोल दो
'चांदनी'; थोड़ा छू मुझे...
थोड़ा जी सकूं; थोड़ा मर मिटूं
थोड़ा प्यार कर; तू यूँ मुझे...

थोड़ा प्यार कर; तू यूँ मुझे...
दिन के ज़ख्मों को रातों को, सीने दो; मत रोको ना...
थोड़े प्यार की थोड़ी खुशियाँ, पीने दो; मत रोको ना...

थोड़े प्यार की थोड़ी खुशियाँ, पीने दो; मत रोको ना...

Sunday, November 22, 2009

इक दिन मेरे गीत....

इक दिन मेरे गीत नशा बनके सर चढ़के बोलेंगे...

इक दिन भोर की किरणें भी मेरे गीतों को गायेंगी
इक दिन सूरज सांझ ढले इनको सुनके सुस्तायेगा।
इक दिन रात की कॉपी में होंगे मेरे ही गीत लिखे
इक दिन मौसम आँख चुरा इन गीतों को दोहरायेगा॥
इक दिन मेरे गीत रुतों के राज़-ए-उल्फ़त खोलेंगे
इक दिन मेरे गीत नशा बनके सर चढ़के बोलेंगे...


इक दिन मेरे गीत ग़ज़ल बनके महफ़िल में गूंजेंगे
इक दिन लोरी बन बच्चों के गालों को सहलायेंगे।
इक दिन लावारिस साजों को गीत मेरे ही छत देंगे
इक दिन ठुमरी बन कोठों पे ठाकुर को बहलायेंगे॥
इक दिन सातों सुर बेसुध हो इन गीतों संग हो लेंगे
इक दिन मेरे गीत नशा बनके सर चढ़के बोलेंगे...

इक दिन मेरे गीत बावरे तुम तक भी जा पहुंचेंगे
इक दिन तुमको इनमें अपनी खुशबू भी आ जायेगी।
इक दिन आधी रात को तुम गीतों से प्यास बुझा लेना
इक दिन आधे ख़्वाब इन्हीं गीतों से पास बुलायेगी॥
इक दिन थके इरादे इनको रख सिरहाने सो लेंगे
इक दिन इन गीतों को सुन तुम हंस लेना हम रो लेंगे
इक दिन मेरे गीत नशा बनके सर चढ़के बोलेंगे...

इक दिन मेरे गीत नशा बनके सर चढ़के बोलेंगे...

Thursday, November 19, 2009

दर्द का ये जश्न है.....

एक पागल रात में

ख़्वाब में था आ गया
घंटों खड़ा आकाश को
एकटक तकता रहा
और अचानक हंस पड़ा
फिर गालियां बकने लगा

अर्श की दीवार पर
खून से लिखने लगा
वो शरीक-ए-जश्न हों
हाँ वो शरीक-ए-जश्न हों
जिसने धोखे खाये हों
रूह जिसकी लुट गयी
और ठरक की सेज़ पर
जिसकी सांसें घुट गयी

पंख जिसके खो गये
हाथ जिसके कट गये
जो ख़राशों में पले
प्यार से महरूम हों
ज़ख्म है जिसकी बहन
आयें वो बलवाई सब
और फ़िज़ा-ए-दर्द में
एक कतरा रूह दें
एक कतरा रूह दें...

आग सी फैली ख़बर
सुन के मुर्दे जी गये
ज़िन्दगी और मौत को
साथ रख कर पी गये
इंकलाबी आ गये
बेड़ियों को तोड़ कर
हाथ में परचम लिये
आंख में शोले लिये
दांत में हड्डी लिये
जीभ को उलटी किये
'आ गयी' मैं 'आ गया'
हर दिशा से शोर था
रास्ते खुद चल पड़े
चल पड़ी पगडंडियाँ
और दलालों से झगड़कर
मंडियों की रंडियां

मुट्ठियों को भींच कर
चीखती थीं बारहा
जाविदा ये रस्म हो
जाविदा ये साज़ हो
जाविदा इस साज़ पर
दर्द की आवाज़ हो
दर्द का ये जश्न है
दर्द का ये जश्न है
हाँ दर्द का ये जश्न है
दर्द का ये जश्न है....

Thursday, November 5, 2009

इश्क फिर हड़ताल पर है...

ख़्वाब जा सोया लचकती डाल पर है
हंसता कालीदास मेरे हाल पर है ॥

दिन हवाले नौकरी के; और जिम्मा
रात का; उस बेसुरे कव्वाल पर है ॥

अर्जियां ले दिल निकम्मा फ़िर रहा है
बेख़बर है; इश्क फिर हड़ताल पर है ॥

जायेगा ये ऊँट कि रानी कटेगी
फ़ैसला बाज़ी की अगली चाल पर है ॥

आओ हम तुम साथ में गंगा नहा लें
सुनते हैं ये कुम्भ बारह साल पर है ॥