वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Thursday, January 29, 2009

नैना सांवरे के.... (एक गीत)


नैना सांवरे के; दिल लिए जाए
काहे सताए बालम; रतियन जगाये

कंगना ना मांगू राजा
गजरा ना चाहूँ; आजा

तकत तकत थक गए नैना
काटु न कटे ये जुलमी रैना

अरज हमारी सैय्यां; काहे नाहिं माने.....


नैना सांवरे के; दिल लिए जाए
काहे सताए बालम; रतियन जगाये

दरपन ना भाये पिया
सखियां सताए पिया

छलक छलक जब मेघा बरसे
बिरहा अगन में ये जिया तरसे

दरद कलेजवा में; लागे सुस्ताने.....


नैना सांवरे के; दिल लिए जाए
काहे सताए बालम; रतियन जगाये

सदियों की प्यासी मीरा
चरणों की दासी मीरा

जनम जनम से मैं तोहरी पिया
मोल करो न मारे जोहरी पिया

बासी नज़र पे वारी, पीतम सयाने......
अंखियन की भासा काहे; नाहिं पहचाने......


नैना सांवरे के; दिल लिए जाए
काहे सताए बालम; रतियन जगाये......

Thursday, January 15, 2009

बिना तुम्हारे...

बरसते नैना, तरसती रैना, उदास बिस्तर, बिना तुम्हारे
है दिल की वादी, तहस नहस सी , उजाड़ बंजर, बिना तुम्हारे।

ये चाँद सूरज, सितारे बिजली, मैं कैसे भूला, ख़बर नहीं है
मैं कैसे भूलूँ, वो बंद कमरा, वो रोना अक्सर, बिना तुम्हारे।

थकी सी पलकें, झपकना चाहें, टहल टहल के, मैं रात काटूं
तुम्हारी ग़ज़लें, तुम्हारे नग्में, हवा पे लिख कर, बिना तुम्हारे।

क्या ऐसा कह दूँ, क्या ऐसा कर दूँ, अदा वो क्या हो, जो तुमको भाये
क्यों दुखता सावन, क्यों रिसता माज़ी, क्यों चुभते मंज़र,बिना तुम्हारे।

कहीं भी गूंजे, तुम्हारी वीणा, हज़ार रोकूँ, मैं अपने दिल को
मैं जानता हूँ, मैं चल पडूंगा, तुम्हारी धुन पर, बिना तुम्हारे।

तमाम मंज़िल, तमाम रूतबा, तमाम दौलत, तमाम शोहरत
मैं आज खुश हूँ, हाँ आज खुश हूँ.... कमी सी है पर, बिना तुम्हारे।

Saturday, January 10, 2009

दिल चाहे ज़िद पर अपनी हम बस यों ही अड़े रहें...

इस आज़ादी के परबत पर कुछ लम्हे खड़े रहें
दिल चाहे ज़िद पर अपनी हम बस यों ही अड़े रहें।

इस बार मेरा 'फिर समझौते' का 'मूड' नहीं है
अब चाहे मुर्दा जिस्म में लाखों कांटे गडे रहें।

थक गई हूँ मैं 'बुड्ढों' की रोका टोकी से
अरे होंगे अपने घर के चाहे जितने बड़े रहें।

मैं छीन के लूंगी धूप जो मेरे हिस्से की है
अब चाहे चाँद सितारे मेरे पांव पड़े रहें।

अब चाहे कोई आकाश मेरे क़दमों में रख दे
अब चाहे नौलक्खे में हीरे मोती जड़े रहें।

Thursday, January 8, 2009

थोडी सी रुसवाई चाहिए....

इज़्ज़त रास नहीं आती है; थोडी सी रुसवाई चाहिए
बहुत निभायी दुनियादारी, अब हमको तन्हाई चाहिए।

बादल ने दरवाज़ा खोला, दस्तक दी जब सावन ने,
मौसम की फरमाइश है ये, अदरक वाली चाय चाहिए।

ना लेन देन, ना जात पात, ना भेद भाव, ना लाज शरम
कौन मनाये पगले को; इसको 'ऐश्वर्या राय' चाहिए।

मीर-ओ-ग़ालिब रट के हमने कुछ कुछ लिखना शुरू किया
लफ्ज़ों में अब तेवर है पर ग़ज़लों में गहराई चाहिए।

'बिट्टू' जाने क्या सुन आया, माँ के पेट को छू कर बोला
बहन जलाई जाती है माँ , अबके मुझको 'भाई' चाहिए।

शायद अँधा गीता पढने वाला है....


बहरे सारे लाइन लगा कर बैठ गए
शायद अँधा गीता पढने वाला है।

गूंगे देखो चीख रहे हैं साहिल पर
'दरिया का पानी ऊपर बढ़ने वाला है'।

मैखाने में देख के 'मुल्ला' साकी सोचे
भोर भये; क्या रूप ये गढ़ने वाला है !

ये तूफ़ान से पहले का सन्नाटा है
फिर कोई इसू सूली चढ़ने वाला है।

Monday, January 5, 2009

हजारों शेर हमको मुंहज़बानी याद है....

अधूरे ख्वाब की रोती निशानी याद है
हजारों शेर हमको मुंहज़बानी याद है।

दिसम्बर की गुलाबी धूप की कातिल समां
बिखरते जुल्फ- ओ-कुर्ता आसमानी याद है।

'कामयाबी' यूँ तो उसके दर पे है
इश्क में वो 'मुंह की खानी' याद है।

नया घर है, नये कपड़े, नये बर्तन
पुराने शहर की बातें पुरानी याद है।

'दादी माँ' की याद धुंधली हो रही है
'एक था राजा - एक थी रानी'; याद है।