इस आज़ादी के परबत पर कुछ लम्हे खड़े रहें
दिल चाहे ज़िद पर अपनी हम बस यों ही अड़े रहें।
इस बार मेरा 'फिर समझौते' का 'मूड' नहीं है
अब चाहे मुर्दा जिस्म में लाखों कांटे गडे रहें।
थक गई हूँ मैं 'बुड्ढों' की रोका टोकी से
अरे होंगे अपने घर के चाहे जितने बड़े रहें।
मैं छीन के लूंगी धूप जो मेरे हिस्से की है
अब चाहे चाँद सितारे मेरे पांव पड़े रहें।
अब चाहे कोई आकाश मेरे क़दमों में रख दे
अब चाहे नौलक्खे में हीरे मोती जड़े रहें।
achha likha hai aapne ,achhi koshish hai jari rahe ....mukkamal honge bas ade rahe ......
ReplyDeletearsh
Good effort
ReplyDeleteमैं छीन के लूंगी धूप जो मेरे हिस्से की है
ReplyDeleteअब चाहे चाँद सितारे मेरे पांव पड़े रहें।
इस बात की तो बात ही कुछ और!
इस बार मेरा 'फिर समझौते' का 'मूड' नहीं है
ReplyDeleteअब चाहे मुर्दा जिस्म में लाखों कांटे गडे रहें।
बेहतरीन पहली बार आपको पढने का मौका मिला अब तो आना ही रहेगा बेहतरीन लिखते हो
अब चाहे जो कोई भी आपसे कुछ भी कहे....
ReplyDeleteआप मैदान में कमर खोंस कर खड़े रहें....!!
acchi koshish hai bhav bhot acche aur sabdon ka chyan bhi accha hai pr sayad yeh gazal nahi ban payi... jari rahen....
ReplyDeleteThank you so much to all of you, for these wonderful comments and feedback. Especially, to Harkirat for bringing the drawbacks to notice. Harkirat, I would appreciate if you could pin point the exact problem with the Ghazal... Thoda detail mein bataiye, to sudhaarne ki nischit koshish karoonga.... Thanks a ton to all of you....I really mean it..
ReplyDeleteWOW!! beautifull! Very creative way to express a woman's thoughts...
ReplyDeleteLagey Raho Munna Bhai!! :-)
kehkahon se ghar ko apne bhar dein, ao
ReplyDeleteab chaahe padosiyon ke muh laadk sade rahein.
bohot pyaari hai :)
In the Endeavour to live life to the utmost perfection I had forgotten about feelings...forgotten..to dream..Forgot how freedom feels.... the first two lines... made me smile and the last one made me take a deep breath and unshackle the chains of Mediocrity ... melt the ice around me......thanks. :)
ReplyDelete