बरसते नैना, तरसती रैना, उदास बिस्तर, बिना तुम्हारे
है दिल की वादी, तहस नहस सी , उजाड़ बंजर, बिना तुम्हारे।
ये चाँद सूरज, सितारे बिजली, मैं कैसे भूला, ख़बर नहीं है
मैं कैसे भूलूँ, वो बंद कमरा, वो रोना अक्सर, बिना तुम्हारे।
थकी सी पलकें, झपकना चाहें, टहल टहल के, मैं रात काटूं
तुम्हारी ग़ज़लें, तुम्हारे नग्में, हवा पे लिख कर, बिना तुम्हारे।
क्या ऐसा कह दूँ, क्या ऐसा कर दूँ, अदा वो क्या हो, जो तुमको भाये
क्यों दुखता सावन, क्यों रिसता माज़ी, क्यों चुभते मंज़र,बिना तुम्हारे।
कहीं भी गूंजे, तुम्हारी वीणा, हज़ार रोकूँ, मैं अपने दिल को
मैं जानता हूँ, मैं चल पडूंगा, तुम्हारी धुन पर, बिना तुम्हारे।
तमाम मंज़िल, तमाम रूतबा, तमाम दौलत, तमाम शोहरत
मैं आज खुश हूँ, हाँ आज खुश हूँ.... कमी सी है पर, बिना तुम्हारे।
थकी सी पलकें, झपकना चाहें, टहल टहल के, मैं रात काटूं
ReplyDeleteतुम्हारी ग़ज़लें, तुम्हारे नग्में, हवा पे लिख कर, बिना तुम्हारे।
तमाम मंज़िल, तमाम रूतबा, तमाम दौलत, तमाम शोहरत
मैं आज खुश हूँ, हाँ आज खुश हूँ.... कमी सी है पर, बिना तुम्हारे।
wah, bahut khoob janab
wah
थकी सी पलकें, झपकना चाहें, टहल टहल के, मैं रात काटूं
ReplyDeleteतुम्हारी ग़ज़लें, तुम्हारे नग्में, हवा पे लिख कर, बिना तुम्हारे।
mujhe bhi ye panktiya bahut achhi lagi...baar -baar padhne aur gungunaane ko dil karta hai
बहुत ख़ूब, बहुत बढ़िया लिखा है!
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
बहुत सुन्दर रचना है।
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