देखना तुम चीख धीमी रह न जाये
हौसलों की ये इमारत ढह न जाये
रूह है बेदार अब इस ज़ुल्म को
दे अहिंसा की दलीलें; सह न जाये
कैंचियों से काट दो गुलदाउदी को
पीढियां तुझको 'नरम-दिल' कह न जाये
आँख क्या अब थूक में भी खून हो
आज कोई लाश ज़िंदा रह न जाये
दिल तुम्हारा बागियों की फौज सा
'चूडियों-अंगड़ाईयों' में बह न जाये
Monday, August 31, 2009
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दिल तुम्हारा बागियों की फौज सा
ReplyDelete'चूडियों-अंगड़ाईयों' में बह न जाये
बहुत सही बात कही..बधाई..हालांकि गुलदाउदी काटने के बारे मे थोडा शंकित हूँ..नरमदिल होना भी जरूरी है..
बहुत सुन्दर लाजवाब रचना,।
ReplyDeleteuffff....itni berehmi kyun bhala???
ReplyDeleteकैंचियों से काट दो गुलदाउदी को
ReplyDeleteपीढियां तुझको 'नरम-दिल' कह न जाये
आँख क्या अब थूक में भी खून हो
आज कोई लाश ज़िंदा रह न जाये
SUBHAAN ALLA ...... TEEKHE TEVAR HAIN IS LAJAWAAB GAZAL MEIN ...... SHAANDAAR .....
बहुत बढ़िया है!
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteमेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ पर आप सभी मेरे ब्लोग पर पधार कर मुझे आशीश देकर प्रोत्साहित करें ।
” मेरी कलाकृतियों को आपका विश्वास मिला
बीत गया साल आप लोगों का इतना प्यार मिला”
कैंचियों से काट दो गुलदाउदी को
ReplyDeleteपीढियां तुझको 'नरम-दिल' कह न जाये...aakrosh sa hai kavita me...
मन की भावनाओं का सुंदर प्रस्फुटन।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आँख क्या अब थूक में भी खून हो
ReplyDeleteआज कोई लाश ज़िंदा रह न जाये
शानदार तेवर हैं, ऐसे ही तल्ख़ शेर लिखा करो