वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Saturday, February 21, 2009

सब हिसाब चाहिए....

धूप से रौनक; चमन से कुछ गुलाब चाहिए
चांदनी कम पड़ गयी है; आफताब चाहिए

सच, मोहब्बत, ख़्वाब अक्सर जीत जाते हैं
जिसमे ये बकवास ना हो; वो किताब चाहिए

बावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
सहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए

ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए

नोंच डाले ख़्वाब नाखुन कुछ तो अपने काम आये
क्यों शिकायत है तुझे और क्या जवाब चाहिए ?

9 comments:

  1. WOW !!!
    ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
    तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए
    you have got a knack of teasing the reader. Interesting. --- Prachi

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  2. सच, मोहब्बत, ख़्वाब अक्सर जीत जाते हैं
    जिसमे ये बकवास ना हो; वो किताब चाहिए

    बावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
    सहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए.

    bhayee vishal ji,
    aapne fir ek baar ek bahut sundar ghazal dii.
    saaqee ;sharab wala sher to bahut hi achchha ban pada hai.
    thanks n best wishes.

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  3. apne hi sapne ko apne hi nakhuno se noch dala..
    aisa kyo kiya?? itna bura sapna tha kya??

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  4. ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
    तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए

    बहूत जोरदार लिखा है............आपमें बागी तेवर नज़र आते हैं, शायर के अंदाज नज़र आते हैं.
    पूरी ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब है

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  5. bahut badiya.......
    aisa hi aacha likhte raho

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  6. बावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
    सहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए

    ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
    तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए

    Beautiful...

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