धूप से रौनक; चमन से कुछ गुलाब चाहिए
चांदनी कम पड़ गयी है; आफताब चाहिए
सच, मोहब्बत, ख़्वाब अक्सर जीत जाते हैं
जिसमे ये बकवास ना हो; वो किताब चाहिए
बावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
सहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए
ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए
नोंच डाले ख़्वाब नाखुन कुछ तो अपने काम आये
क्यों शिकायत है तुझे और क्या जवाब चाहिए ?
Saturday, February 21, 2009
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WOW !!!
ReplyDeleteऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए
you have got a knack of teasing the reader. Interesting. --- Prachi
सच, मोहब्बत, ख़्वाब अक्सर जीत जाते हैं
ReplyDeleteजिसमे ये बकवास ना हो; वो किताब चाहिए
बावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
सहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए.
bhayee vishal ji,
aapne fir ek baar ek bahut sundar ghazal dii.
saaqee ;sharab wala sher to bahut hi achchha ban pada hai.
thanks n best wishes.
Waah Waah
ReplyDeleteapne hi sapne ko apne hi nakhuno se noch dala..
ReplyDeleteaisa kyo kiya?? itna bura sapna tha kya??
ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
ReplyDeleteतू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए
बहूत जोरदार लिखा है............आपमें बागी तेवर नज़र आते हैं, शायर के अंदाज नज़र आते हैं.
पूरी ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब है
bahut badiya.......
ReplyDeleteaisa hi aacha likhte raho
its a wonderful nazm...
ReplyDeleteबावफ़ा इस रात को कैसे अकेला छोड़ दें
ReplyDeleteसहर के होने तलक; 'साक़ी', शराब चाहिए
ऐ मेरी तक़दीर सुन, हर बार क्यों तेरी चलेगी
तू कभी फुर्सत से मिलना; सब हिसाब चाहिए
Beautiful...
nice nice nice.. very nice :)
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