वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Saturday, February 27, 2010

कदमों के मेरे निशां हैं; सखी....

गलियाँ वहीं राह तकती रहीं
हम ही न जाने कहां हैं सखी

संभल के चलो मिट न जायें कहीं
कदमों के मेरे निशां हैं; सखी

साज़ों ने मुझसे है हंस के कहा
अभी तेरी साँसें जवां हैं सखी

रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
चलो देखें कितने जहां हैं सखी

नज़र लेके फूलों से; पढना इन्हें
परियों की ये दास्तां हैं सखी.....

6 comments:

  1. waah ...........bahut hi sundar bhav hain.

    happy holi.

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  2. रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
    चलो देखें कितने जहां हैं सखी

    wah , bahut khoob.

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  3. नज़र लेके फूलों से; पढना इन्हें
    परियों की ये दास्तां हैं सखी....

    फूलों से नजर लेने की बात नयी लगी इस रचना में..

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  4. रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
    चलो देखें कितने जहां हैं सखी

    Bahut achha laga..... very good use of words!

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  5. very beautiful and intense, very nice.

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