गलियाँ वहीं राह तकती रहीं
हम ही न जाने कहां हैं सखी
संभल के चलो मिट न जायें कहीं
कदमों के मेरे निशां हैं; सखी
साज़ों ने मुझसे है हंस के कहा
अभी तेरी साँसें जवां हैं सखी
रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
चलो देखें कितने जहां हैं सखी
नज़र लेके फूलों से; पढना इन्हें
परियों की ये दास्तां हैं सखी.....
Saturday, February 27, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
wah...
ReplyDeletewaah ...........bahut hi sundar bhav hain.
ReplyDeletehappy holi.
रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
ReplyDeleteचलो देखें कितने जहां हैं सखी
wah , bahut khoob.
नज़र लेके फूलों से; पढना इन्हें
ReplyDeleteपरियों की ये दास्तां हैं सखी....
फूलों से नजर लेने की बात नयी लगी इस रचना में..
रिहा हो रहे हैं सपने मेरे
ReplyDeleteचलो देखें कितने जहां हैं सखी
Bahut achha laga..... very good use of words!
very beautiful and intense, very nice.
ReplyDelete