वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Monday, July 27, 2009

मैं तुझमें छुपकर गाऊँगा....

कितने किस्से, कितनी बातें, महका दिन था, जगमग रातें
कतरा कतरा दूर हुए वो, लम्हों की झिलमिल सौगातें।
ये रात, बात, सौगात सभी; हम दोनों में ही शामिल हैं....

जब छेडेंगे ये साज़ कभी, मैं आंखों से मुस्काउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥


आंसू, गुस्सा, शिकवे, तेवर; क्या इल्जाम हो इस दुनिया पर
तुम भी सच्ची, मैं भी सच्चा; वादा और विश्वास अमर
जब थोड़ा सा वक्त मिले तो मूँद के अपनी आंखों को....

मेरे चेहरे को पढ़ लेना, मैं लफ्ज़ नहीं दे पाउँगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥


क्यों तितली के पर छिलते हैं, क्यों इतने कम पल मिलते हैं
इस 'क्यों' के ज़ख्मों को हम तुम, आओ मिलजुल कर सिलते हैं
तुम धरती हो, मैं अम्बर हूँ; अपने रिश्ते का नाम नहीं....

पर जब भी बूँदें चाहोगी, मैं बादल बनकर आउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥

तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥

7 comments:

  1. जब छेडेंगे ये साज़ कभी, मैं आंखों से मुस्काउंगा
    तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
    behad khubsurat geet,siddha ruh ko chu liya badhai.

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  2. बहुत सुन्दर गीत लिखा है विशाल जी , पिछली ग़ज़लें भी बड़ी खूबसूरती से लिखी गईं हैं , और आपका प्रोफाईल पढ़ कर मज़ा आया , तो आपके रचनायें रूपी बच्चे तो खूब फल फूल रहे हैं ! भई वाह

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  3. तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
    बहुत ही खुबसूरत रचना .....इतने कोमल भाव कि आंखे नम हो गयी ......ऐसे ही लिखते रहो

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  4. पर जब भी बूँदें चाहोगी, मैं बादल बनकर आउंगा
    तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥

    vaah.... लाजवाब, gazab का लिखा है

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  5. bahut hi achcha likhte hain aap!
    मेरे चेहरे को पढ़ लेना, मैं लफ्ज़ नहीं दे पाउँगा
    तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
    amazing!

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