वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Thursday, February 5, 2009

कोई तुझको बुला रहा है....


ताज़ा करके याद पुरानी; फिर से मुझको भुला रहा है
दिल है कि बच्चे की माफ़िक; ज़िद पर अपनी तुला रहा है

तुझे पता है, जब रोता है, ये बच्चा बेहद रोता है
फिर क्यों 'टॉफी' दिखा दिखा कर, तू बच्चे को रुला रहा है ?

आंखों को कसमें दी हैं; ना लडेंगी ये; ना लगेंगी ये
बेकार ही इन पत्थर आंखों को, लोरी गाकर सुला रहा है

हर्फ़ में तू हर लफ्ज़ में तू; हर शेर रदीफ़-ओ-बहर में तू
इन ग़ज़लों को गौर से पढ़; कोई तुझको बुला रहा है

उस बार भी तेरी मरज़ी थी; इस बार भी तेरी ही मरज़ी है
अपना दर तो खुला रहा था; अपना दर तो खुला रहा है...

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया ग़ज़ल है!

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  2. तुझे पता है, जब रोता है, ये बच्चा बेहद रोता है
    फिर क्यों 'टॉफी' दिखा दिखा कर, तू बच्चे को रुला रहा है"

    बहुत पसन्द आयीं ये पंक्तियां . धन्यवाद

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  3. हर्फ़ में तू हर लफ्ज़ में तू; हर शेर रदीफ़-ओ-बहर में तू
    इन ग़ज़लों को गौर से पढ़; कोई तुझको बुला रहा है

    बहुत खूब श्रीमन, बहुत ही अच्छे . seedhe hriday men utarne walii .
    'संजीव' बड़ा खुश था अपने में ,बच्चों सी तुकबंदी कर ,
    ख़बर नहीं थी कोई इतनी अच्छी ग़ज़लें बना रहा है .

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  4. आंखों को कसमें दी हैं; ना लडेंगी ये; ना लगेंगी ये
    बेकार ही इन पत्थर आंखों को, लोरी गाकर सुला रहा है

    Bahut sunder rachna hai...

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  5. अश्कों में हुस्नो रंग समोता रहा हु मैं...
    आँचल किसी का थम कर रोता रहा हु मैं..
    अब जाकर निखर है चेहरा सुऊर का..
    बरसों जिसे शराब से धोता रहा हु मैं..

    Rohitash Rahul

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