वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Sunday, May 23, 2010

इतनी आसानी से नहीं मरुंगा....

"मैं इतनी आसानी से नहीं मरुंगा"
अट्ठाईस साल कोई मरने की उम्र नहीं होती..
फ़क़त 'दो उम्र क़ैद'..
तो क्या जो एक एक लम्हा घुटा हूँ..
जिस्म की क़ैद में 
बदन नोचा गया
खाल उधेरी गयी 
नाखून उखाड़े गये 
छाती दागी गयी..
जुर्म?
वो क्या चीज़ है?
हाँ किसी ने एक दफ़ा कहा ज़रूर था...
"दरअसल तुम बोलते बहुत हो"
"बहस करते हो"
"उकसाते रहते हो" 
"ख़ामोश नहीं बैठते"
"मरते भी तो नहीं..."


कैसे मर जाऊं इतनी आसानी से?
अभी मुर्दे चाँद में जान डालनी है..
समेटना है धूप के टुकड़ों को..
गीतों को आवाज़ देनी है..
संवारना है नग़मों  को..
पुचकारना है अपने ज़ख्मों को..
तुम्हारे आंसू पोंछने हैं..
बहुत ज़िम्मेदारियां हैं भई
"मैं तुम्हारा ख़्वाब जो हूँ" 
वही पुराना ज़िद्दी ख़्वाब 
और वही पुरानी शर्त..
कि;
"बोलुंगा"
"बहस करुंगा "  
"उकसाता रहुंगा"
"ख़ामोश नहीं बैठुंगा"
"और न इतनी आसानी से मरुंगा"
ख़्वाब यूं नहीं मरा करते..... 
 

9 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और संवेदनशील रचना है ... ख्वाब मर नहीं सकते ... इसी का सहारा है !

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन प्रस्तुति.......ख्वाब मरा नहीं करते.....ख्वाब है तो जिन्दगी है.........मानवीय भावों की सुन्दर व सशक्त अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  3. great... yahi jijivisha jeene par majboor karti hai

    ReplyDelete
  4. I have also decided today to live few more years.

    ReplyDelete
  5. mujhey shabd nahin milrahe hai
    kaise tarif karun
    kho si gayi main
    bar bar padha
    ek bar do bar tin bar
    najane kitni bar
    keep it up

    ReplyDelete
  6. एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों... ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों...... // आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया..

    ReplyDelete
  7. mann khush ho gaya.... marne ki zarurat bhi nahin

    ReplyDelete
  8. विशाल भाई, आपके ब्‍लॉग पर पहली बार आया हूँ, पर आपका अंदाजे बयां देखकर दुख हो रहा है कि इतने दिन आपके ब्‍लाग से दूर क्‍यों रहा। सचमुच अच्‍छा लिखते हैंआप।

    ---------
    सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
    बदल दीजिए प्रेम की परिभाषा...

    ReplyDelete