वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Friday, May 7, 2010

जहां ख़ामोश होती है; वहीं से बात करती है ....

गिलहरी सूत के धागों को ज्यों तिल-तिल कुतरती है 
वो  रूठ  जाती  है  तो  हम  पे  यूं  गुज़रती  है


कोई जाओ बता दो हमनफ़स* को बात इतनी सी 
तग़ाफ़ुल* चोट देता है; मोहब्बत घाव भरती है 


मुझे आवाज़ दो न दो; मेरी आवाज़ तो सुन लो
तुम्हारे दर से लौटी हर सदा* बेमौत मरती है 


ग़ज़ल  तू  हू-ब-हू 'काफ़िर' के महबूब जैसी है 
जहां ख़ामोश होती है; वहीं से बात करती है 


मुसव्विर* ने अधूरी; ख़्वाब की तस्वीर छोड़ी थी 
मेरी तन्हाई उसमें आसमानी रंग  भरती है...

तग़ाफ़ुल  =  Indifference
सदा  =  sound 
मुसव्विर  =  Artist / Painter 
हमनफ़स  =  Companion

9 comments:

  1. खूबसूरत ग़ज़ल , एक एक शेर कमाल का है

    गिलहरी सूत के धागों को ज्यों तिल-तिल कुतरती है
    वो रूठ जाती है तो हम पे यूं गुज़रती है

    ने तो दिल छू लिया

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  2. मुसव्विर* ने अधूरी; ख़्वाब की तस्वीर छोड़ी थी
    मेरी तन्हाई उसमें आसमानी रंग भरती है...

    वाह ! बहुत सुन्दर!

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  3. bahut badiya... really liked this line मेरी तन्हाई उसमें आसमानी रंग भरती है...

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  4. ग़ज़ल तू हू-ब-हू 'काफ़िर' के महबूब जैसी है
    जहां ख़ामोश होती है; वहीं से बात करती है

    Good one, Boss.

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  5. achhee rachnaa hai
    prabhaav chhortee hai
    badhaaee .

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  6. विशाल जी आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ...आप बेहतरीन लिख रहे हैं...इस ग़ज़ल के सारे के सारे अशआर बहुत खूबसूरत हैं...आपको पढ़ कर जेहनी सूकून मिला है...लिखते रहें...

    नीरज

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  7. विशाल जी आज आपके ब्लॉग पर आया हु, और पहली बार में ही आपका ब्लॉग मेरी फेवरिट में शामिल हो गया ........ ला जबाब पंक्तिया है आपके ब्लॉग में बहुत खूब ...

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  8. ग़ज़ल तू हू-ब-हू 'काफ़िर' के महबूब जैसी है
    जहां ख़ामोश होती है; वहीं से बात करती है
    .....................................beautiful lines.......

    dosh v du vala kisko,ke koun doshi hai....honth chup ho chuke hai ab dur tk khamoshi hai..........

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