बासी, फ़ीका, चुभता मंज़र देखा है
सस्ते में नीलाम हुआ घर देखा है
कैसे कैसे ख़्वाबों को गिरवी रख के
गहरी नींद में सोया बिस्तर देखा है
कल तक फूल ही फूल थे जिसकी बातों में
आज उसी के हाथ में पत्थर देखा है
शायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
मैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है
तुम ही नब्ज़ टटोलो आके रातों की
हमने तो सूरज भी डर-डर देखा है
'काफ़िर' को कब रोता देखा दुनिया ने
चादर से मुंह ढकते अक्सर देखा है......
Friday, February 19, 2010
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शायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
ReplyDeleteमैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है
-वाह! क्या बात है!!
एक से एक सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteशायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
ReplyDeleteमैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है
behatareen.
कैसे कैसे ख़्वाबों को गिरवी रख के
ReplyDeleteगहरी नींद में सोया बिस्तर देखा है
कल तक फूल ही फूल थे जिसकी बातों में
आज उसी के हाथ में पत्थर देखा है
गौरव जी लाजवाब
हर एक शेर कमाल का है शुभकामनायें
Brilliant as usual!
ReplyDeleteकल तक फूल ही फूल थे जिसकी बातों में
ReplyDeleteआज उसी के हाथ में पत्थर देखा है
मेरे हाथो से तराशे हुए पत्थर के बुत,मुझपे ही बरस पड़े.
शायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
मैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है ..लाजवाब
extremely intense and beautifully written...
ReplyDeleteसोया बिस्तर ..mitr tumne to neend udaane wali baat kardi.
ReplyDeletebohot achhe. :)
bahut badiya..
ReplyDeleteAmazing Stuff Bro ... You ar eRocking !!
ReplyDeletePlease read my blog and let me know what you think!
ReplyDeletehttp://bestvacationdestinations.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत गजल..अपनी ही कलम को हर बार चेकमेट देने की आदत बना ली है आपने..वैसी ही यह गज़ल..खास कर बिस्तर की नींद की ख्वाहिश..और यह वाला शे’र
ReplyDeleteशायद थोड़ी आंच बची हो रिश्ते की
मैंने बुझी अंगीठी छूकर देखा है
Dude...its amazing....need a favour...just give me print outs of these............i ll cherish them forever.....
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