वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Friday, January 22, 2010

मैं गुज़रा नहीं ऐसी राहों से पहले.....

नाम-ए-मोहब्बत हो शाहों से पहले
मैं गुज़रा नहीं ऐसी राहों से पहले

इबादत में झुकने को चंदा फ़लक से
आया इधर  ईदगाहों  से पहले

मैं किस्तों में थोडा सा मर-मर के जी लूं
तेरे गेसुओं की  पनाहों से पहले

ज़बां से भी कह देंगे वो लफ्ज़ जानां
ज़रा बात कर लूं निगाहों से पहले

ख़ुदा  मुन्सिफ़ी* में मुझे इतना हक़ दे
जी भर के हंस लूं, कराहों से पहले

हथेली की रेखा पे अफ़सोस इतना
सज़ा है मुक़र्रर*; गुनाहों से पहले....


मुन्सिफ़ी = Judgement / Justice
मुक़र्रर = Decided

8 comments:

  1. बहुत उम्दा..वाह!

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  2. बहुत खूबसूरत आमद हुई है आपकी इतनी उम्दा ग़्ज़ल के साथ..जैसे पुराने रंग वापस आ गये..एक-एक शेर चोट देता हुआ..कि एक की तारीफ़ करना हिमाकत होगी..मगर इन का क्या कहूँ

    ख़ुदा मुन्सिफ़ी* में मुझे इतना हक़ दे
    जी भर के हंस लूं, कराहों से पहले

    हथेली की रेखा पे अफ़सोस इतना
    सज़ा है मुक़र्रर*; गुनाहों से पहले....

    सुभानल्लाह

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  3. hi vishal, 4 the past 4 yrs im listening ur stuff frm my frzs.recentely came to know abt ur blog. & This poetry wow BEAUTIFUL, my best wishes 4 future
    akaki

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