नफ़रतों की, रूह में आमद नहीं हो
हादसों की ज़द में फिर संसद नहीं हो
उस परिंदे की नज़र देना मुझे रब
जिसकी आँखों में कहीं सरहद नहीं हो
मज़हबी तामीर ही आओ गिरा दें
एक फ़िरके का बचा गुम्बद नहीं हो
तारीक़-ए-तारीख़ पर मलहम लगाएं
और कोशिश में 'छुपा मक़सद' नहीं हो
झुक के भाई से गले न मिल सकें हम
या ख़ुदा इतना किसी का क़द नहीं हो
'ओम' का टीका लगा सजदे करें सब
आज पागलपन की कोई हद नहीं हो
पाँव ज़िद्दी और होते जा रहे हैं
कौन हँसता था कि 'तुम अंगद नहीं हो'
आज सच का जाम पी कुछ बोल लूं मैं
क्या पता कल ये नशा शायद नहीं हो....
Tuesday, January 26, 2010
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Wonderful! Very well composed.
ReplyDeleteati uttam , ek ek sher pankti lajawaab.
ReplyDeleteWah.. "aman ki asha"
ReplyDeleteAll I can say its one of your best creations ever..a masterstroke!!..keep it up..
ReplyDeleteclassic banjane ke sare ingredients hain!
ReplyDeletebehtarin sher
ReplyDeleteउस परिंदे की नज़र देना मुझे रब
जिसकी आँखों में कहीं सरहद नहीं हो
badhai