नाम-ए-मोहब्बत हो शाहों से पहले
मैं गुज़रा नहीं ऐसी राहों से पहले
इबादत में झुकने को चंदा फ़लक से
आया इधर ईदगाहों से पहले
मैं किस्तों में थोडा सा मर-मर के जी लूं
तेरे गेसुओं की पनाहों से पहले
ज़बां से भी कह देंगे वो लफ्ज़ जानां
ज़रा बात कर लूं निगाहों से पहले
ख़ुदा मुन्सिफ़ी* में मुझे इतना हक़ दे
जी भर के हंस लूं, कराहों से पहले
हथेली की रेखा पे अफ़सोस इतना
सज़ा है मुक़र्रर*; गुनाहों से पहले....
मुन्सिफ़ी = Judgement / Justice
मुक़र्रर = Decided
Friday, January 22, 2010
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wah
ReplyDeleteबहुत उम्दा..वाह!
ReplyDeletebahut khoob, behatareen.
ReplyDeletesimply
ReplyDeleteWaah !
बहुत खूबसूरत आमद हुई है आपकी इतनी उम्दा ग़्ज़ल के साथ..जैसे पुराने रंग वापस आ गये..एक-एक शेर चोट देता हुआ..कि एक की तारीफ़ करना हिमाकत होगी..मगर इन का क्या कहूँ
ReplyDeleteख़ुदा मुन्सिफ़ी* में मुझे इतना हक़ दे
जी भर के हंस लूं, कराहों से पहले
हथेली की रेखा पे अफ़सोस इतना
सज़ा है मुक़र्रर*; गुनाहों से पहले....
सुभानल्लाह
hi vishal, 4 the past 4 yrs im listening ur stuff frm my frzs.recentely came to know abt ur blog. & This poetry wow BEAUTIFUL, my best wishes 4 future
ReplyDeleteakaki
Outstanding
ReplyDeleteu r grt brother
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