वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Sunday, April 25, 2010

रुबाई - (९)

इन्साफ़ हैरां लफ्ज़ की तक़लीद से है..  
ये अदालत तस्दीक़-ओ-तरदीद से है.. 

सच के हक़ में फ़ैसला जाये तो मानूं
"बाँझ औरत"  इस दफ़ा 'उम्मीद से'  है.....


तक़लीद = बिना सोचे समझे अनुकरण (follow) करना
तस्दीक़ = सही ठहराना (support  करना) 
ओ = और
तरदीद = खंडन करना (opposite of  तस्दीक़)

8 comments:

  1. waah waah antim pankti ne to dil chhoo liya....

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  2. बहुत अच्छे

    http://rajdarbaar.blogspot.com

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  3. बहुत सुन्दर रुबाई है !

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  4. ओह हर दफ़ा एक नया तीर ले कर ही आते हैं आप..गो कि आते देर से हैं..

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  5. didnt get all of wat u have said, sir. however little i have understood wants me to understand more of it .

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  6. bahot khub misal di aapne banjh aurat aaj umeed se hai.wah

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