सखी मेरे ख़्वाबों की ताबीर हो तुम
सखी मेरे सजदे की तामीर हो तुम
सखी तुम दुआ हो; सखी तुम अजां हो
सखी पाक रिश्ते की तासीर हो तुम
मेरी रूह के ज़ख़्मी हिस्से में शामिल
परियों; फ़रिश्तों के किस्से में शामिल
मोहब्बत कहीं दफ़्न होती है मर के?
यक़ीं है कि किस्मत की रेखा से लड़ के...
लहू बन के मेरे रगों में बहोगी...
किसी रात तारों से आ के कहोगी...
मैं तुझमें हूँ ज़िंदा... मैं तुझमें बसी हूँ...
मैं तुझमें हूँ ज़िंदा... मैं तुझमें बसी हूँ...
अँधेरा ये ग़म का घना हो तो क्या है?
उजाले का आना मना हो तो क्या है?
किसी ने बिछड़ते हुये सच कहा था
फ़क़त जिस्म क्या है; फ़ना हो तो क्या है?
गायेगी बुलबुल तेरा नाम लेकर
लौटेगा सूरज वही शाम लेकर
उसी शाम ने एक वादा किया है
सुना है उसी शाम ने कह दिया है...
सखी तुम 'सदा' हो; सदा ही रहोगी
किसी रात तारों से आ के कहोगी...
मैं तुझमें हूँ ज़िंदा... मैं तुझमें बसी हूँ...
मैं तुझमें हूँ ज़िंदा... मैं तुझमें बसी हूँ...
ताबीर = परिणाम
तामीर = निर्माण
तासीर = असर
फ़ना = मौत / ख़त्म
सदा = आवाज़ / हमेशा
Tuesday, April 20, 2010
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..आनन्द आया.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावनात्मक कविता है ! दिल को छुं गई !
ReplyDeletemeri rooh ke jkhmi hisse me shamil priyon
ReplyDeletebhut khoob .aap ko aage bhi pdhna chahungi .
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