वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Thursday, April 23, 2009

हमेशा जंग में हारे, वो अच्छा आदमी क्यों हो.....


हमारे ख़्वाब की ताबीर पर काई जमी क्यों हो
हमेशा जंग में हारे; वो अच्छा आदमी क्यों हो ?

जिस शहर ने औरत की इज्ज़त बेच खायी हो
उस शहर के राजा का कुरता रेशमी क्यों हो ?

मोहब्बत शर्त पर तो की नहीं जाती मेरे हमदम
मोहब्बत है तो फिर शिद्दत में अब कुछ भी कमी क्यों हो ?

उनको भूले अरसा गुज़रा, मुद्दत बीती आलम जाने
ये उनका जिक्र आते ही तेरी साँसें थमी क्यों हो ?

हमने तय किया ग़ज़लों में अबके आग भर देंगे
फिर मक़ते की बुनियाद पर इतनी नमी क्यों हो ?