कहने वालों को कहानी चाहिये
गाँव को पर तर्ज़ुमानी चाहिये
है सियासी खून जिसने चख लिया
शर्त कुछ हो; 'राजधानी' चाहिये
कमसिनों को है तजुरबे की पड़ी
और ज़ईफ़ों को जवानी चाहिये
जब मिली 'व्हिस्की' तो 'सोडा' चाहिये
मिल गया सोडा तो 'पानी' चाहिये
एक 'राधा' से कहाँ भरता है दिल
एक 'मीरा' सी दिवानी चाहिये
एक कोने में खड़ा 'काफ़िर' कहे
मुझको ग़ज़लों में रवानी चाहिये....
तर्ज़ुमानी = translation
कमसिन = कम उम्र वाला / वाली
ज़ईफ़ = बुज़ुर्ग
सियासी = political
रवानी = Flow / बहाव
Sunday, May 30, 2010
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अरे वाह जी बहुत सुंदर जबाब नही
ReplyDeleteधन्यवाद
गज़ब कह गये सर जी...दिलो-दिमाग के अधूरेपन को ख्वाहिशाना अंदाज मे उकेर दिया....खासकर यह
ReplyDeleteकमसिनों को है तजुरबे की पड़ी
और ज़ईफ़ों को जवानी चाहिये
उस्तादों जैसे अशआर लगते हैं..जबर्दस्त!!
kya baat hai bandhu.... maja aa gaya... khaaskar ye padh kar:
ReplyDeleteकमसिनों को है तजुरबे की पड़ी
और ज़ईफ़ों को जवानी चाहिये
एक कोने में खड़ा 'काफ़िर' कहे
ReplyDeleteमुझको रब कि मेहरबानी चाहिए ...
है सियासी खून जिसने चख लिया
ReplyDeleteशर्त कुछ हो; 'राजधानी' चाहिये...
Bahut acche ustaad, aap ke shabd bhaa gayee...