वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Wednesday, October 5, 2011

एक शेर...

दिल से दिल मिलना चाहिए "काफ़िर"...
शराब का क्या है; कहीं भी मिल जायेगी...

Saturday, September 17, 2011

एक शेर....

हादसों की मंडियों में; फिर सियासत चल रही है....
ये हुकूमत ठंढ में है; और 'दिल्ली' जल रही है...



Saturday, July 31, 2010

रुबाई -१२

दूर पर्बत से हवा को मोड़ लाया हूँ..
बादलों का एक गुच्छा तोड़ लाया हूँ...


जो लकीरें चंद बरसों से कहीं गुमराह थीं 
वो लकीरें आज फिर मैं जोड़ लाया हूँ... 

Sunday, June 20, 2010

ज़िद्दी ख़ून उबल पड़ता है ....

ज़िद्दी ख़ून उबल पड़ता है 
जब साँसों पे बल पड़ता है


जगी आँख का सोया सपना 
नींद में अक्सर चल पड़ता है


एक शरारा बुझे तो कोई 
और शरारा जल पड़ता है 


आंसू ज़ाया ना कर 'काफ़िर'
हवन में 'गंगाजल' पड़ता है...

Sunday, May 30, 2010

कहने वालों को कहानी चाहिये....

कहने वालों को कहानी चाहिये
गाँव को पर तर्ज़ुमानी चाहिये 

है सियासी खून जिसने चख लिया 
शर्त कुछ हो; 'राजधानी' चाहिये 

कमसिनों को है तजुरबे की पड़ी 
और ज़ईफ़ों को जवानी चाहिये  

जब मिली 'व्हिस्की' तो 'सोडा' चाहिये  
मिल गया सोडा तो 'पानी' चाहिये  

एक 'राधा' से कहाँ भरता है दिल  
एक 'मीरा' सी दिवानी चाहिये  

एक कोने में खड़ा 'काफ़िर' कहे  
मुझको ग़ज़लों में रवानी चाहिये....


तर्ज़ुमानी  =  translation 
कमसिन  =  कम उम्र वाला / वाली 
ज़ईफ़  =  बुज़ुर्ग  
सियासी  =  political
रवानी  =  Flow / बहाव 

Sunday, May 23, 2010

इतनी आसानी से नहीं मरुंगा....

"मैं इतनी आसानी से नहीं मरुंगा"
अट्ठाईस साल कोई मरने की उम्र नहीं होती..
फ़क़त 'दो उम्र क़ैद'..
तो क्या जो एक एक लम्हा घुटा हूँ..
जिस्म की क़ैद में 
बदन नोचा गया
खाल उधेरी गयी 
नाखून उखाड़े गये 
छाती दागी गयी..
जुर्म?
वो क्या चीज़ है?
हाँ किसी ने एक दफ़ा कहा ज़रूर था...
"दरअसल तुम बोलते बहुत हो"
"बहस करते हो"
"उकसाते रहते हो" 
"ख़ामोश नहीं बैठते"
"मरते भी तो नहीं..."


कैसे मर जाऊं इतनी आसानी से?
अभी मुर्दे चाँद में जान डालनी है..
समेटना है धूप के टुकड़ों को..
गीतों को आवाज़ देनी है..
संवारना है नग़मों  को..
पुचकारना है अपने ज़ख्मों को..
तुम्हारे आंसू पोंछने हैं..
बहुत ज़िम्मेदारियां हैं भई
"मैं तुम्हारा ख़्वाब जो हूँ" 
वही पुराना ज़िद्दी ख़्वाब 
और वही पुरानी शर्त..
कि;
"बोलुंगा"
"बहस करुंगा "  
"उकसाता रहुंगा"
"ख़ामोश नहीं बैठुंगा"
"और न इतनी आसानी से मरुंगा"
ख़्वाब यूं नहीं मरा करते..... 
 

Friday, May 21, 2010

प्यार ऐसे जता दीजिये...

प्यार ऐसे जता दीजिये 
बेसबब ही सता दीजिये 

मेरा ईमान रख लीजिये 
मेरे हक़ में ख़ता दीजिये  

इतनी रहमत अता कीजिये
जुर्म-ए-काफ़िर बता दीजिये 

बंदगी का तलबगार हूँ 
अपने घर का पता दीजिये...


बेसबब  =  without any reason 
ख़ता  =  mistake 
रहमत  =  मेहरबानी 
अता  =  to give
जुर्म-ए-काफ़िर  =  crime of poet (Kaafir is Pen Name of the Poet)        
बंदगी  =  worship 
तलबगार  =  wisher / चाहने वाला