"मैं इतनी आसानी से नहीं मरुंगा" अट्ठाईस साल कोई मरने की उम्र नहीं होती.. फ़क़त 'दो उम्र क़ैद'.. तो क्या जो एक एक लम्हा घुटा हूँ.. जिस्म की क़ैद में बदन नोचा गया खाल उधेरी गयी नाखून उखाड़े गये छाती दागी गयी.. जुर्म? वो क्या चीज़ है? हाँ किसी ने एक दफ़ा कहा ज़रूर था... "दरअसल तुम बोलते बहुत हो" "बहस करते हो" "उकसाते रहते हो" "ख़ामोश नहीं बैठते" "मरते भी तो नहीं..."
कैसे मर जाऊं इतनी आसानी से? अभी मुर्दे चाँद में जान डालनी है.. समेटना है धूप के टुकड़ों को.. गीतों को आवाज़ देनी है.. संवारना है नग़मों को.. पुचकारना है अपने ज़ख्मों को.. तुम्हारे आंसू पोंछने हैं.. बहुत ज़िम्मेदारियां हैं भई "मैं तुम्हारा ख़्वाब जो हूँ" वही पुराना ज़िद्दी ख़्वाब और वही पुरानी शर्त.. कि; "बोलुंगा" "बहस करुंगा " "उकसाता रहुंगा" "ख़ामोश नहीं बैठुंगा" "और न इतनी आसानी से मरुंगा" ख़्वाब यूं नहीं मरा करते.....
बेसबब = without any reason ख़ता = mistake रहमत = मेहरबानी अता = to give जुर्म-ए-काफ़िर = crime of poet (Kaafir is Pen Name of the Poet) बंदगी = worship तलबगार = wisher / चाहने वाला
A poet and Dreamer by heart.... who incidentally works on Excel sheets to stay alive....
May be someday, my dreams will have madness strong enough to break free from this 'double life'... I have nothing more to say...
By the way, all the poems that you would find on this blog are my original compositions. The only reason why I have put them here is to save them from getting lost with each losing diary... Kisi Shayar ne kaha hai - "Hazaaron Sher mere so gaye Kaagaz ki kabron mein / Ajab MAA hoon koi bachcha mera zindaa nahiin rahta".... So, here I am, putting them all on this blog hoping that the "Virtual world is safer"....
Takhallus (Pen Name) --- KAAFIR
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