ज़िद्दी ख़ून उबल पड़ता है
जब साँसों पे बल पड़ता है
जगी आँख का सोया सपना
नींद में अक्सर चल पड़ता है
एक शरारा बुझे तो कोई
और शरारा जल पड़ता है
आंसू ज़ाया ना कर 'काफ़िर'
हवन में 'गंगाजल' पड़ता है...
Sunday, June 20, 2010
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