मुझे ये इल्म है कि 'राम' रेखा लांघ बैठा है
मगर अफ़सोस कि 'सीता' पे सारा शक़ गया होगा
चलो 'ईमान' का अब गुमशुदा में नाम लिखवा दें
के 'काफ़िर' ढूंढ कर इंसाफ़; काफ़ी थक गया होगा
सुना है 'बेगुनाही' रास्ते से लौट आयी है
यक़ीनन 'जुर्म' ले फ़रियाद; दिल्ली तक गया होगा
सरासर झूठ है, मैं ख़ुदकुशी करने को आया था
सलीबे* पे मेरा सर कोई क़ातिल रख गया होगा
अदालत! मुफ़लिसों* से इस क़दर तुम मुंह तो मत फेरो
बहुत उम्मीद से वो दर पे दे दस्तक गया होगा....
सलीब* = सूली
मुफ़लिस* = ग़रीब
Thursday, March 4, 2010
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