नींद में वादी मचल रही थी
धड़कन थम थम के चल रही थी।
सुला के कलियों को फूलों को
खुनक हवाएं टहल रही थी।
किरणें ओस की बूँदें पी के
आसमान से फिसल रही थी।
चाँद मनचला झाँक रहा था
चांदनी कपड़े बदल रही थी।
रूम के बाहर बर्फ जमी थी
और वो अन्दर पिघल रही थी।
उस रात मनाली के सीने में
गूँज पुरानी ग़ज़ल रही थी।
Thursday, July 30, 2009
Monday, July 27, 2009
मैं तुझमें छुपकर गाऊँगा....
कितने किस्से, कितनी बातें, महका दिन था, जगमग रातें
कतरा कतरा दूर हुए वो, लम्हों की झिलमिल सौगातें।
ये रात, बात, सौगात सभी; हम दोनों में ही शामिल हैं....
जब छेडेंगे ये साज़ कभी, मैं आंखों से मुस्काउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
आंसू, गुस्सा, शिकवे, तेवर; क्या इल्जाम हो इस दुनिया पर
तुम भी सच्ची, मैं भी सच्चा; वादा और विश्वास अमर
जब थोड़ा सा वक्त मिले तो मूँद के अपनी आंखों को....
मेरे चेहरे को पढ़ लेना, मैं लफ्ज़ नहीं दे पाउँगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
क्यों तितली के पर छिलते हैं, क्यों इतने कम पल मिलते हैं
इस 'क्यों' के ज़ख्मों को हम तुम, आओ मिलजुल कर सिलते हैं
तुम धरती हो, मैं अम्बर हूँ; अपने रिश्ते का नाम नहीं....
पर जब भी बूँदें चाहोगी, मैं बादल बनकर आउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
कतरा कतरा दूर हुए वो, लम्हों की झिलमिल सौगातें।
ये रात, बात, सौगात सभी; हम दोनों में ही शामिल हैं....
जब छेडेंगे ये साज़ कभी, मैं आंखों से मुस्काउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
आंसू, गुस्सा, शिकवे, तेवर; क्या इल्जाम हो इस दुनिया पर
तुम भी सच्ची, मैं भी सच्चा; वादा और विश्वास अमर
जब थोड़ा सा वक्त मिले तो मूँद के अपनी आंखों को....
मेरे चेहरे को पढ़ लेना, मैं लफ्ज़ नहीं दे पाउँगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
क्यों तितली के पर छिलते हैं, क्यों इतने कम पल मिलते हैं
इस 'क्यों' के ज़ख्मों को हम तुम, आओ मिलजुल कर सिलते हैं
तुम धरती हो, मैं अम्बर हूँ; अपने रिश्ते का नाम नहीं....
पर जब भी बूँदें चाहोगी, मैं बादल बनकर आउंगा
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
तुम मुझमें छुपकर हंस लेना, मैं तुझमें छुपकर गाऊंगा॥
Friday, July 17, 2009
चलता पुर्जा शायर है, गुलज़ार नहीं है
खूं तो अब भी लाल है, रफ़्तार नहीं है
'काफ़िर' तेरी ग़ज़लों में अब धार नहीं है॥
बंद करके ख़ुद ही सारी खिड़कियाँ वो
बोलते हैं घर ये हवादार नहीं है॥
शोहरों के नकाब में ना मर्सिया चलें
शहर में ऐसा कोई त्योहार नहीं है॥
उसूलों की लिबास जला डालिए हुज़ूर
अब पाँच साल आपकी सरकार नहीं है॥
ये क्या नए जुड़े तो पिछले छूटते गए
मोहब्बत इक किताब है, अख़बार नहीं है॥
***सीधा सादा आदमी है, सीधी बात कहे
चलता पुर्जा शायर है, गुलज़ार नहीं है ***
'काफ़िर' तेरी ग़ज़लों में अब धार नहीं है॥
बंद करके ख़ुद ही सारी खिड़कियाँ वो
बोलते हैं घर ये हवादार नहीं है॥
शोहरों के नकाब में ना मर्सिया चलें
शहर में ऐसा कोई त्योहार नहीं है॥
उसूलों की लिबास जला डालिए हुज़ूर
अब पाँच साल आपकी सरकार नहीं है॥
ये क्या नए जुड़े तो पिछले छूटते गए
मोहब्बत इक किताब है, अख़बार नहीं है॥
***सीधा सादा आदमी है, सीधी बात कहे
चलता पुर्जा शायर है, गुलज़ार नहीं है ***
Wednesday, July 1, 2009
ऐतवार को दिन में भी हम सो लेते हैं....
ज़मीं है बंजर; फिर भी सपने बो लेते हैं
जो भी प्यार से मिले, उसी के हो लेते हैं॥
आंखों के दरवाज़े पे बेताब खड़े हैं
अश्कों को आज़ाद करें, चल रो लेते हैं॥
जब अक्सर वो ख़्वाबों में आने लगते हैं
ऐतवार को दिन में भी हम सो लेते हैं॥
उलट उलट के ग़म के मौजे कब तक पहनें
साबुन-सर्फ़ से घिसके इनको धो लेते हैं॥
मैखाने से तौबा कर ली हमने साक़ी
हाँ, महफ़िल में तारे नाचें, तो लेते हैं॥
जो भी प्यार से मिले, उसी के हो लेते हैं॥
आंखों के दरवाज़े पे बेताब खड़े हैं
अश्कों को आज़ाद करें, चल रो लेते हैं॥
जब अक्सर वो ख़्वाबों में आने लगते हैं
ऐतवार को दिन में भी हम सो लेते हैं॥
उलट उलट के ग़म के मौजे कब तक पहनें
साबुन-सर्फ़ से घिसके इनको धो लेते हैं॥
मैखाने से तौबा कर ली हमने साक़ी
हाँ, महफ़िल में तारे नाचें, तो लेते हैं॥
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