वक़्त की क़ैद में; ज़िन्दगी है मगर... चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं....

Saturday, September 17, 2011

एक शेर....

हादसों की मंडियों में; फिर सियासत चल रही है....
ये हुकूमत ठंढ में है; और 'दिल्ली' जल रही है...



5 comments:

  1. सुन्दर काटाक्ष

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  2. बहुत खूब ...लाजवाब शेर है ...

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  3. बहुत हो गयी ठण्ड .....अब ये बर्फ पिघलनी चाहिए.....वर्ना शोले भड़कने लगेंगे....

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  4. wo joh fakr karte thhey hind pe, aaj kahan hai ?
    yeh jalan dil mei hai,unki kami khal rahi rahi.

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  5. अति उत्तम कटाक्ष

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